रेल अधिकारियों के प्रमोशन पर भारी संकट
वेतन देने हेतु क़र्ज़ लेने को मजबूर हो गई रेलवे
- ख़त्म हो जाएंगी वर्कचार्ज पोस्टें
- एडहाक प्रमोशन भी नहीं मिल पाएगा
- वर्कचार्ज एवं एडहाक पोस्टों का एक्सटेंशन खतरे में
- सितम्बर के बाद बहुत से अधिकारी लौट सकते हैं अपनी पूर्व स्थिति में..
- सभी कैडरों में 140 से अधिक हैं एसएजी अधिकारी
अब स्थिति यह आ गई है कि जहाँ भारतीय रेल को अपने करीब 13.61 लाख रेल कर्मचारियों को मासिक वेतन देने के लिए बाहर से 2000 करोड़ रूपये का क़र्ज़ लेने पर मजबूर होना पड़ रहा है, वहीँ इसके करीब 140 सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (एसएजी) के अतिरिक्त (एक्सेस) अधिकारियों को घर बैठाकर या फर्जी ट्रेनिंग पर भेजकर वेतन-भत्तों सहित सारी सुविधाएँ मुफ्त में देकर सरकारी राजस्व को हर महीने करोड़ों रूपये का चूना लगाया जा रहा है. बताते हैं कि रेलवे के पास जितने स्वीकृत पद नहीं हैं उससे ज्यादा प्रमोशन दे दिए गए हैं. इसी वजह से यह विकट स्थिति पैदा हुई है. पर्याप्त 'प्लान आउट ले' न होने के कारण ही इन 140 अतिरिक्त एसएजी अधिकारियों को घर बैठाकर अथवा फर्जी मैनेजमेंट ट्रेनिंग पर भेजकर इनके सभी वाजिब वेतन-भत्तों का भुगतान करना पड़ रहा है. इस प्रकार देखा जाए तो प्रत्येक कैडर में औसतन 15 से 20 एसएजी अधिकारी एक्सेस हैं. जबकि अभी प्रत्येक कैडर में सैकड़ों अधिकारी एसएजी में प्रमोशन के लिए पिछले 2 - 3 साल से इंतजार में हैं. बताते हैं कि ऐसे 'वेट लिस्टेड' अधिकारियों को सेलेक्शन ग्रेड में ही एसएजी का ग्रेड देकर उनके असंतोष को रोक कर रखा गया है. तथापि उनके अंदर पनप चुके अवसाद के कारण उनके काम की गुणवत्ता प्रभावित हुई है, इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता..
इसके अलावा अब अधिकारियों की वर्कचार्ज पोस्टों और एडहाक प्रमोशन पर भारी संकट मंडराने लगा है.. इससे सबसे ज्यादा एस एंड टी, सिविल, एकाउंट्स और इलेक्ट्रिकल यह चार विभाग प्रभावित होने वाले हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार इन चारों विभागों में वर्कचार्ज पोस्टों की संख्या क्रमशः 68%, 64%, 61% और 54% है. जबकि बाकी विभागों, स्टोर्स में 36%, मैकेनिकल में 32%, ट्रैफिक में 26% और पर्सनल में 27% वर्कचार्ज पोस्टें हैं. रेलवे बोर्ड में हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि सितम्बर के बाद यदि इन वर्कचार्ज पोस्टों को एक्सटेंशन नहीं दिया जाता है तो एस एंड टी, सिविल, एकाउंट्स और इलेक्ट्रिकल इन चार विभागों का काम तो न सिर्फ लगभग ठप ही हो जाएगा, बल्कि इनमे तमाम अधिकारियों के ड्यू प्रमोशन भी लम्बे समय तक के लिए अटक जाएँगे. सूत्रों का कहना है कि वर्कचार्ज पोस्टों में समस्या यह आ रही है कि 'प्लान आउट ले' में पू. रे., द. पू. रे., पू.सी.रे. और मेट्रो रेलवे को ही सारा पैसा झोंक दिया गया है क्योंकि इन्हीं चारों रेलों के अंतर्गत पूर्व एवं वर्तमान रेलमंत्री तथा उनकी पार्टी का संपूर्ण कार्यक्षेत्र आता है. इसलिए बाकी रेलों के पास काम करवा लेने के बाद न तो अपने ठेकेदारों को और न ही अपने कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए पैसा है. केंद्र सरकार अपनी कमजोरियों में फंसी हुई है, इसलिए उसे भारतीय रेल में सतत चल रहे 2जी स्पेक्ट्रम, सीडब्ल्यूजी जैसे महाघोटालों की कोई चिंता नहीं है, क्योंकि उसने सत्ता की समर्थक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों के लिए भारतीय रेल को एक चारागाह बना दिया है..?
-प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी
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