Thursday, December 16, 2010 by G.N.Shaw
आप-बीती-०४(अ)....../बाकि सब कंगाल.
कल यानि तारीख १६-१२-२०१० को कर्नाटक एक्सप्रेस ( जो बंगलुरु से चल कर नयी दिल्ली ) को लेकर,गुंतकल से सोलापुर जा रहा था.रात को साढ़े बारह बजे ड्यूटी में लगा था और सात बज कर पचास मिनट पर सोलापुर पहुंचा था.१५ दिन पहले जब इसी ट्रेन को लेकर सोलापुर गया था,तब उतनी ठंढी नहीं थी किन्तु कल ठंढी बर्दास्त से बाहर थी.वैसे हमारे लोको का डिजाईन भी लाज-बाब है.इसके अंग-अंग में इतने छेड़ है की क्या कहना.जब ठंढी हवा,छोटे-छोटे छिद्र से होती हुई,शरीर को छूती है तो ऐसा लगता है की बन्दुक की गोली शरीर को बेध का चली गई.
लोको पायलट चाहे जितना भी शिकायत क्यों न करे ,इन शेड वालो के कानो पर जू तक नहीं रेंगती.बेचारे लोको पायलट करे तो क्या.? इनके दुस्मन प्रशासन ही ज्यादा है.परः दुसरे कहते हुए मिल जायेंगे-मरने दो सालो को,इनकी बगार बहुत ज्यादा है.जी देखिये अपनी-अपनी ड्यूटी को करने में ,किसी को लापरवाही ही क्यों करनी चाहिए भला.सभी अपने भाग्य और ओहदे के मुताबिक कमाते है.
क्या आपने लोको पायलटो को लापरवाही से ट्रेन चलाते देखा है ? इनके कामो में लापरवाही हो ही नहीं सकती.जरा सी सावधानी हटी की दुर्घटना घटी.लोको में दो पायलट होते है ,इनके ऊपर हजारो ब्यक्तियो की जान टिकी है.आप कितने इतमिनान से अपने बर्थ पर सो जाते है और सुबह जब उठे तो आप का अपना स्टेशन आप का स्वागत करते हुए तैयार रहता है.
क्या आप ने कभी ,पीछे भी देखा और सोंचा है की, आप की यात्रा को मंगल मय बनाने में किसकी योगदान है..रात भर बिना पलक गिराए ये लोको पायलट आप की सेवा में लगे रहते है.इनके लिए कोई भी मौसम कोई मायने नहीं रखता.अब आये काम की बाते करें.कल हुआ यूँ की जब मै दुधानी स्टेशन से कर्नाटक एक्सप्रेस को लेकर बरोटी को जा रहा था तो ५१२/७-६ किलो मीटर पर, की - मैन लाल झंडे दिखाते हुए खड़ा था. क्यों की रेल लाइन का वेल्ड टूट गया था और करीब एक इंच का गैप तैयार हो गया था.मैंने तुरंत इमरजेंसी ब्रेक लगा दी.ट्रेन चिचियाते हुए ५१२/२ किलो मीटर के जगह पर रुक गई.सुबह के करीब पौने सात बज रहे थे.हमने गार्ड साहब को इसकी इतला दी. चुकी स्पोट सुरक्षित पास हो गई थी अतः हमारे गार्ड साहब ने सुझाव दिया की आगे बढ़ें.इस गैप पर अगर कोई ट्रेनपूरी गति से गुजरे तो गिर या दुर्घटना के शिकार हो सकती थी.भगवान का शुक्र है जो हम बच गए.
मैंने देखा की, की-मैन की दशा बेहद दर्द-निय थी, बेचारा एक छोटी सी शाल को लपेटे हुए खड़े-खड़े काँप रहा था.पर इमां की ड्यूटी के आगे वह ठंढी भी निर्लज बनी हुई थी,ठीक वैसे -जैसे रेलवे के ये हैं प्रोफाइल अफसर .मुझे महान उपन्यासकार और लेखक मुंशी प्रेमचंद की कहानी "पुश की रात ' की याद आ गई जहाँ जबरू अपने स्वामी के साथ अपने कर्तब्य को निभाने में जाड़े का भी ध्यान नहीं रखा था.
हम आगे बढे और बरोटी स्टेशन पर सारी सूचना मास्टर को दी जिससे आगे की कार्यवाही की जा सके.इस तरह से पुरे दिन भर उस सेक्सन में सभी ट्रेनों को सत्रकता आदेश के साथ भेजा गया और हम किसी अप्रिय दुर्घटना के शिकार होने से बचे.
उस की-मैन को उचित पुरस्कार देना चाहिए.क्यों की उसकी सत्रकता ने एक गंभीर दुर्घटना को होने से रेलवे को बचाई.
०२) इसी कड़ी में देंखे तो ,एक दूसरी घटना में कल ही -हैदराबाद-दोन सेक्सन में, एक माल गाड़ी का लोको पटरी से निचे उतर गया.इसका कारण भी रेल के वेल्ड में टूट बताया जा रहा है.इसके वजह से बहुत सी एक्सप्रेस गाडियो को अपने रास्ते को बदल कर जाना पड़ा या कई घंटो तक रास्ता साफ़ होने का इंतजार करना पड़ा.
अंत में मै तो यही कहूँगा की रेलवे में जो जीता ,वही सिकंदर.बाकि सब कंगाल.
Posted by G.N.SHAW at 10:37 PM
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