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21/04/2009

मेल ड्राइवरों के चयन में देरी, रेलवे को लाखों का नुकसान

मुंबई : रेल प्रशासन में यह कितनी बड़ी विसंगति है कि जब कोई सामान्य कर्मचारी अथवा जूनियर अधिकारी कोई छोटी-मोटी गलती भी करता है तो उसे अधिकतम दंड दिया जाता है. मगर जब कोई जेए ग्रेड अथवा एसए ग्रेड अफसर कोई गलती करता है और इस वजह से रेलवे को न सिर्फ लाखों का नुकसान हो जाता है बल्कि उससे तमाम कर्मचारी प्रभावित होने के साथ-साथ पूरी व्यवस्था को भी नुकसान उठाना पड़ता है, तब भी संबंधित अधिकारी क खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होती है.
कुछ ऐसा ही मामला म.रे. मुंबई मंडल में मेल ड्राइवरों के विभागीय चयन में भी हुआ है. जहां करीब 578 मेल ड्राइवरों की पोस्टें खाली पड़ी हों, वहां समय से इनका चयन न होने का मतलब उपलध रनिंग स्टाफ पर काम का ज्यादा दबाव और व्यवस्था के प्रति स्टाफ में भारी आक्रोश का पैदा होना होता है. स्थिति यह है कि रनिंग की वैकेंसी तो बढ़ाई नहीं जातीं, मगर एक तरफ लोग रिटायर होते रहते हैं, तो दूसरी तरफ गाडिय़ों की संया में लगातार वृद्धि होती रहती है. फिर सीजन और त्यौहारी छुट्टिïयों के समय सैकड़ों स्पेशल ट्रेनों के लिए भी अतिरिक्त रनिंग स्टाफ की जरूरत पड़ती है.
इस सबके बावजूद रनिंग की रिक्त जगहें भरने के लिए समय से प्रक्रिया शुरू नहीं की जाती. यही काम मुंबई मंडल में भी हुआ. गत दिनों जब यह मामला डीआरएम पीएनएम उठाया गया तो स्वयं निवर्तमान डीआरएम श्री जे. एन. लाल यह जानकर आश्चर्यचकित रह गए कि काफी समय से मुंबई मंडल में मेल ड्राइवरों की वैकेंसी नहीं भरी गई है और 578 पोस्टें खाली पड़ी हैं. जहां किसी अन्य डिवीजन में रनिंग स्टाफ की कुल इतनी पोस्टें होती हैं, वहां मुंबई मंडल में उससे कहीं ज्यादा पोस्टें खाली पड़े होने की बात डीआरएम श्री लाल को बुरी तरह खल गई. उन्होंने पीएनएम में ही संबंधित अधिकारी की तरफ मुखातिब होकर कहा था कि इतनी सारी वैकेंसी होने के बावजूद आपने उन्हें भरने के लिए कभी भी डिमांग यों नहीं डाली.
बताते हैं कि इसके बाद श्री लाल ने जब इन वैकेंसी को भरने की डिमांग डाली तो म.रे. मुयालय सहित रेलवे बोर्ड को भी आवाक रह जाना पड़ा. तब श्री लाल की ही कोशिशों के चलते रेलवे बोर्ड द्वारा आरआरबी, इलाहाबाद द्वारा चयनित करीब 800 सहायक ड्राइवरों का पूरा पैनल मुंबई मंडल, म.रे. को डायवर्ट किया गया. इस प्रकार सैकड़ों सहायक ड्राइवर तो उपलध हो गए, मगर मेल ड्राइवरों की 92 वैकेंसी फिर भी नहीं भर पाईं. तब इन 92 मे./ड्राइवरों की वैकेंसी भरने के लिए संबंधित अधिकारी द्वारा गत वर्ष 2008 में रनिंग स्टाफ से विलिंगनेस मांगी गई, जो कि आज करीब साल भर बीत जाने पर भी नहीं भरी जा सकी हैं.
इसका कारण यह बताया जाता है कि चूंकि 6वें वेतन आयोग की अज्ञानता के कारण गुड्स से लेकर मेल ड्राइवरों तक सभी को एक ही पे-बैंड (4200 रु.) में रखा गया है, इसलिए रनिंग स्टाफ में नाराजगी के चलते तथा मेल/घाट ड्राइवर के अत्यंत जिमेदारी पूर्ण पद पर उसी ग्रेड में काम करना रनिंग के लोगों को मंजूर नहीं था. अत: रनिंग स्टाफ ने विलिंगनेस को सिरे से नकारते हुए मेल ड्राइवर में जाने से इंकार कर दिया. इसका परिणाम यह हुआ कि पहले जहां 1-1 वैकेंसी के लिए 10-10 लोग जाने हेतु इच्छुक रहते थे, वहां इन 92 पोस्टों के लिए मात्र 54 लोगों ने ही अपनी विलिंगनेस दी. इससे संबंधित अधिकारियों में चिंताजनक हड़कंप मचा और यह तय किया गया कि चयन में देरी करने से इन 54 में से भी और कुछ लोग ड्रापआउट न हो जाएं, इसलिए जल्दी से चयन कर लिया जाना चाहिए.
इसके लिए 27, 28, 29 जनवरी 2009 की तारीख तय की गई थी. परंतु इससे संबंधित इंचार्ज अधिकारी की ज्यादा होशियारी के चलते यह प्रयास भी विफल हो गया, योंकि चयन समिति के बाकी दो अधिकारियों को विश्वास में लिए बिना और यहां तक कि उन्हें बताए और उनके साथ एक भी बैठक किए बिना ही संबंधित अधिकारी ने अकेले ही मेल ड्राइवरों का चयन करके पैनल बनाकर चयन समिति के दूसरे सदस्य (डीपीओ) के पास उस पर हस्ताक्षर करने के लिए भेज दिया. आश्चर्यचकित और गुस्साये डीपीओ ने इस चयन से अपनी असहमति जताते हुए उक्त पैनल पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया और पैनल लौटा दिया. बताते हैं कि चयन के समय कुछ उमीदवारों ने संबंधित अधिकारी से यह पूछा भी था कि चयन समिति के बाकी दो सदस्य यों नहीं हैं, या वह अकेले ही सारा चयन करेंगे, इस पर उक्त अधिकारी ने उन्हें डांटकर कहा था कि तुम सिर्फ अपने काम से काम रखो, यह देखना तुहारा काम नहीं है.
इसका परिणाम जो अपेक्षित था, वही हुआ और इस खींचतान में दो-ढाई महीने का समय और गुजर गया. उक्त पैनल को अंतत: रद्द होना ही था, हो भी गया. तत्पश्चात संबंधित अधिकारी ने बिना कोई निर्धारित प्रक्रिया अपनाए ही स्वयं पुन: 17, 18, 19 मार्च 2009 की तारीख तय करके पुराने लोगों को ही चयन के लिए बुला लिया, जबकि एक बार पैनल रद्द होने के बाद नियमानुसार पुन: उसकी समस्त निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है, जो कि नहीं की गई. तथापि चयन के लिए पूर्व में जिन 54 लोगों ने विलिंगनेस दी थी, उन्हें ही बुलाया गया. परंतु इस बार इन 54 में से 12 लोग और ड्राप आउट हो गए और इनमें से सिर्फ 42 लोग ही आये. इस बार इन 42 लोगों का चयन कर लिया गया.
परंतु इस देरी और संबंधित इंचार्ज अधिकारी की मनमानी अथवा अनुभवहीनता के चलते कीमती समय का जो नुकसान हुआ, सो तो हुआ ही, बल्कि इससे रेलवे को करीब ढाई-तीन लाख रुपए के नुकसान की चपत भी लग गई योंकि दो-दो बार एक ही चयन हेतु जो लोग आए, उन दिनों का उन्हें वेतन दिया गया तथा उनकी जगह उनके बदले ड्यूटी करने के लिए अन्य स्टाफ से जो ओवर टाइम करवाया गया, वह रेलवे को अतिरिक्त देना पड़ा. रनिंग स्टाफ का कहना है कि रेलवे को लाखों रुपए के इस नुकसान और कीमती समय की बरबादी तथा समय से वैकेंसी भरने की प्रक्रिया शुरू करने की अपनी जिमेदारी का निर्वाह न करने के लिए या रेल प्रशासन इस अधिकारी की जिमेदारी तय करते हुए इस पर दंडात्मक कार्रवाई करेगा..? जबकि इतनी गैर जिमेदारी और लापरवाही के लिए रेल प्रशासन एक सामान्य कर्मचारी को मेजर पेनाल्टी देकर 4-5 साल के लिए सूली पर टांग देता है और अंतत: उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया जाता है.
संबंधित अधिकारी का यह गैर जिमेदाराना रवैया और अनुभवहीनता यहीं खत्म नहीं हो जाती. उन्होंने इन चयनित 42 लोगों में से मात्र 5 लोगों को ही घाट ट्रेनिंग के लिए भेजा है, जिसमें कल्याण सबर्बन से 2, सीएसटी लोको से 1, इगतपुरी से 1 और पुणे से 1 ड्राइवर का नाम था. इनमें से भी पुणे के ड्राइवर ने घाट ट्रेनिंग में जाने से मना करते हुए 'नाट विलिंगÓ लिखकर भेज दिया. यानी कि अब कुल मात्र 4 ड्राइवरों को 50-60 हजार रुपए मासिक वेतन पाने वाला एक इंस्ट्रटर पढ़ा-लिखा रहा है. यहां यदि इंचार्ज अधिकारी अनुभवहीन नहीं होता तो वह सीएसटी सबर्बन से चयनित किसी मोटरमैन को पुणे वाले की जगह ट्रेनिंग के लिए भेज सकता था. मगर उन्होंने शायद इसकी जरूरत नहीं समझी. योंकि वह खुद संपूर्ण सबर्बन संचालित करने की अकेले ही पूरी काबिलियत रखते हैं...?
हालांकि इन 42 लोगों के पैनल को 13-14 लोगों के तीन बैच बनाकर पूरी ट्रेनिंग करवाई जा सकती थी, जो कि भारी वैकेंसी गैप और समर लीव के कारण एकदम वाजिब और जल्दी भी होता. स्टाफ की आशंका है कि कहीं यह सारे 42 लोग घाट सेशन में ही तो नहीं खपा दिए जाएंगे? हालांकि उार पूर्व एवं दक्षिण पूर्व दोनों घाट सेशनों में 20-25 लोगों से ज्यादा की जरूरत नहीं है. इस तरह यदि देखा जाए तो इस पैनल के पहले 13-14 लोगों को मेल/एसप्रेस पर सीधे ट्रेनिंग के लिए भेजा जा सकता था. जिससे यह ट्रेनिंग भी जल्दी पूरी हो जाती. अब आशंका इस बात की भी है कि पुणे वाले ड्राइवर की तरह ही इन बचे हुए 41 लोगों में से भी काफी लोग 'नॉट विलिंगÓ दे सकते हैं. अब संबंधित इंचार्ज अधिकारी की इस अहमकाना प्रक्रिया के चलते इन 42 लोगों को पहले उार-पूर्व में फिर दक्षिण-पूर्व में और बाद में मेल/एसप्रेस में बार-बार घुमा-घुमाकर ट्रेनिंग दिलाई जाएगी, जिससे एक तरफ अति आवश्यक वैकेंसीज को भरने का समय लंबा होगा, तो दूसरी तरफ रेलवे का नुकसान बढ़ता जाएगा.
स्टाफ का कहना है कि यदि यही प्रक्रिया चलती रही तो इस पैनल का एक चक्र पूरा होने और इन 42 लोगों की प्रॉपर पोस्टिंग करने में करीब डेढ़ से दो वर्ष का समय लग जाएगा, जो कि यदि समझदारी से काम लिया गया होता तो यही प्रक्रिया ज्यादा से ज्यादा मात्र 4-5 माह में पूरी हो सकती थी और बार-बार टुकड़ों में ट्रेनिंग का समय एवं पैसा बचाते हुए शीघ्र वैकेंसी फिलअप की जा सकती थीं.
स्टाफ का कहना है कि संबंधित इंचार्ज अधिकारी के इस गैर जिमेदाराना और लापरवाहीपूर्ण रवैये तथा अनुभवहीनता का परिणाम रनिंग स्टाफ को पहली बार नहीं भुगतना पड़ रहा है. वह कभी एक बीमार और पहले से ही सिक लीव पर चल रहे ड्राइवर को चयन में शामिल होने के लिए परमिट कर देते हैं, तो कभी ट्रेनिंग स्कूल में एक खास सहायक चालक के लिए बार-बार फोन करके उसे ट्रेनिंग में ही रोके रखने हेतु चीफ इंस्ट्रटर पर दबाव डालते हैं. जिससे उक्त सहायक चालक को बिना काम किए ही वेतन मिलता रहे. योंकि उस सहायक चालक के लिए उनके 'आकाÓ (एक यूनियन विशेष के एक पदाधिकारी) का ऐसा ही आदेश होता है. वह कुछ खास और चुस्त-दुरुस्त-तंदुरुस्त लोगों को स्पेशल ड्यूटी देकर या उनका एडजेस्टमेंट करवाकर न सिर्फ उनका टाइम पास करवाते हैं बल्कि उन्हें हरामखोरी या चापलूसी का वेतन दिलवाते हैं. बल्कि बीमार और टूटी हड्डी वाले सिक लीव पर चल रहे ड्राइवरों को 'ड्यूटी के लिए फिट' करके भेजने का फरमान रेलवे डॉटरों को फोन करके सुनाते हैं.
कभी वह लोको इंस्पेटरों का पैनल उल्टा-सीटा चयन करके एक श्रमिक संगठन के लिखित विरोध के बावजूद लागू कर देते हैं और संगठन को जवाब देने की जरूरी प्रक्रिया की जरूरत भी नहीं समझते हैं. हालांकि संबंधित संगठन के कुछ पदाधिकारियों, जो कि काफी हद तक अकर्मण्यता को प्राप्त होते जा रहे हैं, ने भी अपनी स्वार्थलिह्रश्वसा अथव चापलूसी के चलते निर्धारित प्रक्रिया अपनाए जाने का दबाव भी प्रशासन पर नहीं बनाया था, जबकि उक्त पैनल की पोस्टिंग्स शायद दो साल तक भी न हो पाएं तो कभी अपने कुछ खास चहेते लोगों को सीनियर क्रू कंट्रोलर्स में उनकी मनचाही जगह पर बैठने के लिए उनसे सीनियर लोगों की गलत पोस्टिंग कर उन्हें परेशान करके उनसे रियूजल लिखा लेने में भी इस रनिंग इंचार्ज अधिकारी को कोई गुरेज नहीं होता. हालांकि रेल फिर भी दौड़ रही है. जिस रेलवे में जीएम/सीओएम जैसी पोस्टें महीनों खाली रह कर भी रेल का चका सुचारु रूप से समय पर चलता रहता हो, तो वहां ऐसे गैरजिमेदाराना, अनुभवहीन, पक्षपाती अधिकारी के बिना भी तो यह सारे काम हो सकते हैं. इसलिए बोर्ड एवं मध्य रेल प्रशासन को चाहिए कि ऐसे अकर्मण्य अधिकारी को तुरंत ट्रांसफर करके उपरोक्त लापरवाहियों, पक्षपातों की जांच कराकर उसकी जिमेदारी तय की जाए.

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PME Due Date

Master Circular No. 25



Copy of Railway Board’s letter No. 69/H/3/11 dated 06.12.1974



Subject: Implementation of the Recommendations of the Visual Sub-Committee.



6. Periodical re-examination of serving Railway Employees:



6.l. In order to ensure the continued ability of Railway employees in Classes A l, A 2, A 3, B l and B 2 to discharge their duties with safety, they will be required to appear for re-examination at the following stated intervals throughout their service as indicated below:



6.1.1. Classes A l, A 2 and A 3 —At the termination of every period of three years, calculated from the date of appointment until they attain the age of 45 years, and thereafter annually until the conclusion of their service.



Note: (l) The staff in categories A l, A 2 and A 3 should be sent for special medical examination in the interest of safety under the following circumstances unless they have been under the treatment of a Railway Medical Officer.



(a) Having undergone any treatment or operation for eye trouble irrespective of the duration of sickness.



(b) Absence from duty for a period in excess of 90 days.



(2) If any employee in medical category A has been periodically medically examined at any time within one year prior to his attaining the age of 45, his next medical examination should be held one year from the due date of the last medical examination and subsequent medical examination annually thereafter.



If, however, such an employee has been medically examined, at any time earlier, than one year prior to his attaining the age of 45, his next medical examination should be held on the date he attains the age of 45 and subsequent medical examination annually thereafter.




Ammendment: It was ammended in 1993 as below



Age Group PME Due



Age 00-45 every 4yrs



Age 45-55 every 2yrs



Age 55-60 every year
Details:-
As per Rly Bd's Guideline of Medical Exam issued vide LNo. 88/H/5/12 dated 24-01-1993

a) PME would be done at the termination of every period of 4 years from date of appointment / Initial medical Exam till the date of attainment of age of 45 years, every 2 years upto 55 years & there after annual till retirement.
b) Employees who has been periodically examined at any time within 2years prior to his attaining the age of 45years would be examined after 2years from the date of last PME & subsequent PME for every 2years upto 55years age.Of

NRMU 4 you
SMLokhande





6.1.2. Classes B-1 and B-2—On attaining the age of 45 years, and thereafter at the termination of every period of five years.